सामान्य अध्ययन प्रथम के प्रश्नपत्र में आयोग से जारी आंसर-की में दिए गए गलत उत्तरों के कारण वे असफल हो गए जबकि उन्होंने सही उत्तर दिए हैं। यदि सही उत्तरों के आधार पर मूल्यांकन किया जाए तो वे भी सफल हो सकते हैं। उनका कहना था कि कुछ प्रश्न गलत थे तो कुछ के उत्तर गलत एवं कुछ समझ से परे यानी अस्पष्ट और कुछ के दो उत्तर सही थे। कोर्ट ने 14 प्रश्न ऐसे पाए, जिनको लेकर विवाद है।
इलाहाबाद विधि संवाददाताइलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीसीएस प्री 2017 की उत्तरपुस्तिकाओं का पुनमरूल्यांकन कर फिर से परिणाम घोषित करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि पुनमरूल्यांकन की इस प्रक्रिया के बाद जो अभ्यर्थी क्वालीफाई करें, उन्हें मुख्य परीक्षा में शामिल किया जाए। साथ ही पहले के नंबरों से सफल जो अभ्यर्थी पुनमरूल्यांकन में असफल हो जाएंगे, उन्हें मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया जाए। कोर्ट ने इन गलत उत्तरों के कारण दोबारा परीक्षा कराने को औचित्यपूर्ण नहीं माना। कहा कि गलत उत्तर विकल्प वाला एक प्रश्न निरस्त किया जाए और शेष दो के सही उत्तरों के आधार पर अंक दिए जाएं। कोर्ट ने आयोग को निर्देश दिया है कि ए, बी, सी व डी सीरीज के प्रश्न संख्या 67, 140, 44 व 106 को डिलीट किया जाए। ए, बी, सी व डी सीरीज के प्रश्न संख्या 121, 44, 98 व 10 में जिन अभ्यर्थियों ने सी या डी उत्तर दिया है, उन्हें पूरे अंक दिए जाएं। साथ ही ए, बी, सी व डी सीरीज के प्रश्न संख्या 56, 129, 33 व 105 में जिन अभ्यर्थियों ने डी उत्तर दिया है, उन्हें पूर्ण अंक दिए जाएं। यह फैसला न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राहुल सिंह व कई अन्य की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए शुक्रवार को खुली अदालत में सुनाया। याचिकाओं में पीसीएस प्री 2017 में आए प्रश्नों के गलत उत्तरों को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने यह आदेश अनुराग त्रिपाठी बनाम संघ लोक सेवा आयोग के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर दिया। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चयन प्रक्रिया में शुचिता कायम रखी जानी चाहिए। आयोग की गलती का खामियाजा अभ्यर्थियों को न भुगतना पड़े। खंडपीठ ने राजेश कुमार के केस में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के हवाले से कहा कि ऐसे मामले में पुन: परीक्षा की बजाय पुनमरूल्याकंन का आदेश देना उचित है। इसी प्रकारहाईकोर्ट ने भी पुन: परीक्षा की मांग को उचित नहीं माना है।
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