इलाहाबाद विधि संवाददाता इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इलाहाबाद की 5 साल की भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की अधिसूचना की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए नौ जनवरी की तारीख लगाई है। केंद्र ने राज्य सरकार की संस्तुति पर अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक की आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच कराने की अधिसूचना जारी की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किन तथ्यों के आधार पर आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच कराई जा रही है और क्या आयोग के अध्यक्ष व सदस्य सरकार द्वारा जांच कराने की अधिसूचना की वैधानिकता को चुनौती दे सकते हैं।यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले एवं न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उप्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन का कहना है कि हाईकोर्ट भी संवैधानिक संस्था है, रजिस्ट्रार जनरल के जरिए याचिका दाखिल की जा सकती है। ऐसे में लोक सेवा आयोग को भी याचिका दाखिल करने का अधिकार है। कोर्ट ने जानना चाहा है कि आयोग के क्रियाकलापों की जांच कराने का निर्णय किन तथ्यों के आधार पर लिया गया है। अधिवक्ता एके गोयल का कहना है कि हाईकोर्ट ने उप्र लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को विधिविरुद्ध करार दिया है। उन्हीं पर भर्तियों में धांधली करने का आरोप है। उधर वरिष्ठ अधिवक्ता का यह भी कहना था कि मुख्य सचिव ने आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को बुलाकर इस्तीफा मांगा। नई सरकार गठित होने के बाद से ही आयोग के खिलाफ जांच की मांग उठाने लगी और राज्य सरकार ने संवैधानिक संस्था के खिलाफ जांच कराने की संस्तुति कर दी। उनका कहना है कि एक संवैधानिक संस्था के क्रियाकलापों की जांच का आदेश जारी करना विधिसम्मत नहीं है।
Wednesday, 3 January 2018
आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच को इलाहाबाद में हाईकोर्ट चुनौती
इलाहाबाद विधि संवाददाता इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इलाहाबाद की 5 साल की भर्तियों की जांच सीबीआई से कराने की अधिसूचना की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के लिए नौ जनवरी की तारीख लगाई है। केंद्र ने राज्य सरकार की संस्तुति पर अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक की आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच कराने की अधिसूचना जारी की है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किन तथ्यों के आधार पर आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच कराई जा रही है और क्या आयोग के अध्यक्ष व सदस्य सरकार द्वारा जांच कराने की अधिसूचना की वैधानिकता को चुनौती दे सकते हैं।यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले एवं न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उप्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन का कहना है कि हाईकोर्ट भी संवैधानिक संस्था है, रजिस्ट्रार जनरल के जरिए याचिका दाखिल की जा सकती है। ऐसे में लोक सेवा आयोग को भी याचिका दाखिल करने का अधिकार है। कोर्ट ने जानना चाहा है कि आयोग के क्रियाकलापों की जांच कराने का निर्णय किन तथ्यों के आधार पर लिया गया है। अधिवक्ता एके गोयल का कहना है कि हाईकोर्ट ने उप्र लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को विधिविरुद्ध करार दिया है। उन्हीं पर भर्तियों में धांधली करने का आरोप है। उधर वरिष्ठ अधिवक्ता का यह भी कहना था कि मुख्य सचिव ने आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को बुलाकर इस्तीफा मांगा। नई सरकार गठित होने के बाद से ही आयोग के खिलाफ जांच की मांग उठाने लगी और राज्य सरकार ने संवैधानिक संस्था के खिलाफ जांच कराने की संस्तुति कर दी। उनका कहना है कि एक संवैधानिक संस्था के क्रियाकलापों की जांच का आदेश जारी करना विधिसम्मत नहीं है।
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