बीएड की फर्जी मार्क्सशीट के आधार पर एक व्यक्ति इंटर कॉलेज में 27 सालों से नौकरी कर रहा है। वर्ष 1998 में हुए सत्यापन में भी इसकी मार्क्सशीट फर्जी होने की पुष्टि हुई थी। बावजूद इसके प्रबंधक/प्रधानाचार्य की मिलीभगत से वह न सिर्फ नौकरी में बना रहा बल्कि वेतन भी लेता रहा। शासन के निर्देश पर अभिलेखों के सत्यापन प्रक्रिया में जब मामले का खुलासा हुआ तो डीआईओएस ने उसका वेतन रोककर प्रबंधक/प्रधानाचार्य को नोटिस जारी किया है।
प्रतापपुर कमैचा विकास खंड स्थित इंटरमीडिएट कॉलेज में एक व्यक्ति की 1993 में सहायक अध्यापक के पद पर तदर्थ शिक्षक के रूप में नियुक्ति हुई थी। उस समय उसने वर्ष 1993 का शिक्षा शास्त्री/बीएड का संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का अंकपत्र लगाया था। जब शासन ने सभी शिक्षकों का शैक्षिक अभिलेख सत्यापन कराने का निर्देश दिया तो सत्यापन के समय उसने आदर्श भारतीय माध्यमिक विद्यालय खेतासराय जौनपुर का शिक्षा शास्त्री/बीएड का अंकपत्र प्रस्तुत कर दिया।
संदेह होने पर नियुक्ति के समय की पत्रावली मंगाई गई। इसमें दोनों अंकपत्रों में भिन्नता मिली। वर्ष 1998 में हुए सत्यापन रिपोर्ट में नियुक्ति के समय लगाई गई मार्क्सशीट को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी ने फर्जी करार दिया था। विश्वविद्यालय के कुल सचिव ने उक्त अनुक्रमांक पर कोई भी अंकपत्र निर्गत नहीं होने की बात कही थी। जिला विद्यालय निरीक्षक श्याम किशोर तिवारी ने कॉलेज के प्रबंधक/प्रधानाचार्य को नोटिस देकर जवाब मांगा है।
0 comments:
Post a Comment