प्रदेश में 69,000 शिक्षकों की भर्ती का मामला अब भी कोर्ट में फंसा हुआ है। उधर, नौकरी पाने की हसरत पाले परीक्षा दे चुके अभ्यर्थी इंतजार में बेचैन हैं। मामला अदालत में होने के कारण वर्ष 2018 में निकली शिक्षक भर्ती विज्ञप्ति की नियुक्ति प्रक्रिया अभी तक पूरी नहीं हो पाई है, जबकि इससे संबंधित परीक्षाएं पूरी करा ली गईं, लेकिन रिजल्ट घोषित नहीं किया गया है।
इस भर्ती को लेकर योगी सरकार ने बहुत संजीदगी दिखाई और अभ्यर्थियों से वादा किया था कि इनकी नियुक्ति 15 फरवरी तक संपन्न करा ली जाएगी और प्राथमिक विद्यालयों में भेज दिया जाएगा।
लेकिन भर्ती परीक्षा के होते ही तमाम विवाद खड़े हो गए और यह मामला न्यायालय में जा अटका। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ में चल रहे उत्तीर्णांक 90/97 केस में अब मामला दो न्यायधीशों की पीठ में लंबित है।
इससे पहले योगी सरकार ने योग्य शिक्षक का हवाला देकर भर्ती परीक्षा के उत्तीर्णांक (पासिंग मार्क) को 60/65% पर रखा और एकल पीठ में इसका बचाव भी किया। इस दौरान एकल पीठ ने सरकार की दलीलों को दरकिनार कर विभागीय गलतियां गिनाकर सरकार के उलट फैसला 40/45% उत्तीर्णांक पर दे दिया।
दरअसल, लोकसभा चुनाव के चलते यह मामला योगी सरकार की प्राथमिकता में नहीं रहा। इसीलिए अब तक सरकार ने अपनी तरफ से इस फैसले को चुनौती नहीं दी है, लेकिन प्रभावित हो रहे बीटीसी/बीएड अभ्यर्थिओं ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती दे दी है। अब सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है, यह वक्त ही बताएगा।
लेकिन इसकी मार अब बेचारे अभ्यर्थियों को झेलनी पड़ रही है, जो कड़ी मेहनत करके विभिन्न परीक्षाओं में भाग लेकर पास होते हैं। अंत में आकर वे राजनैतिक और विभागीय गलतियों का शिकार बनते हैं।
अब देखना है कि योगी सरकार कैसे इस भर्ती को न्यायालय में बचाती है, क्योंकि 69,000 अभ्यर्थियों के साथ-साथ प्राथमिक विद्यालयों में नौनिहाल भी अपने योग्य शिक्षक की बाट जोह रहे हैं।
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