प्रयागराज : विभिन्न भर्ती परीक्षाओं में आवेदन करने के बाद अभ्यर्थी स्क्रीनिंग परीक्षा से ही वंचित हो जाए और यह भी न पता चले कि उसकी योग्यता या अर्हता में कहां कमी रह गई तो उस पर क्या बीतेगी। कुछ इन्हीं मामलों में यूपीपीएससी यानी उप्र लोक सेवा आयोग की नीति और गोपनीयता युवाओं के सपनों से छलावा कर रही हैं। भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता के नाम पर केवल स्क्रीनिंग परीक्षा ही कराई जा रही है उसमें भी पंजीयन से पहले तमाम आवेदनों को अनर्ह कर संबंधित अभ्यर्थियों को इसकी वजह तक नहीं बताई जाती।
सरकारी विभागों में रिक्तियां सीधी भर्ती माध्यम से भरने की जिम्मेदारी सबसे अधिक यूपीपीएससी पर है। इसके लिए कुल रिक्तियों के सापेक्ष आवेदन मानक से अधिक होने पर स्क्रीनिंग परीक्षा कराने का नियम है। इसके जरिए कुल रिक्तियों से करीब तीन गुना अभ्यर्थियों को श्रेष्ठताक्रम से उत्तीर्ण पाते हुए उन्हें ही साक्षात्कार में बुलाने की नीति लंबे समय से चली आ रही है। लेकिन, परीक्षा से पहले तमाम आवेदन योग्यता या अर्हता पूरी न होने पर अनर्ह कर दिए जाने पर इसका कारण ऑनलाइन करने का कोई नियम नहीं है। 17 मार्च को डेंटल सर्जन के 595 पदों पर हुई स्क्रीनिंग परीक्षा में भी तमाम आवेदन रद कर दिए गए। जबकि अनर्ह अभ्यर्थियों की सूची जारी नहीं की गई। आरआइ (प्राविधिक) के 79 पदों पर भर्ती के लिए साक्षात्कार तक की प्रक्रिया अपनाए जाने के बाद हाईकोर्ट में 48 याचिकाएं दाखिल होने की यही प्रमुख वजह रही। जिसके चलते आरआइ भर्ती का परिणाम अब तक रुका हुआ है। भर्ती परीक्षाओं से वंचित होने वाले अभ्यर्थियों की मानें तो यूपीपीएससी जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के संबंध में शीर्ष कोर्ट के निर्देश का भी पालन नहीं कर रहा है।
यूपीपीएससी के सचिव जगदीश का साफ तौर पर कहना है कि आवेदन अनर्ह होने पर इसकी सकारण सूची जारी करने का नियम नहीं है।
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