उत्तर प्रदेश में 69000 सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा मामले में सरकार की ओर से बहस पूरी हो गई है। शुक्रवार की बहस के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि योग्य अभ्यर्थियों के बजाय कमजोर अभ्यर्थियों का चयन करना योग्य अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव होगा। याची पक्ष की ओर से बहस शुरू हो गई है। सोमवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से फिर से पक्ष रखा जाएगा।
मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में गुरुवार को सरकार की ओर से पक्ष रखने के पश्चात वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्रा ने सुझाव दिया था कि कुल पदों अर्थात 69 हजार के डेढ गुने अभ्यर्थियों को शॉर्टलिस्ट करने पर सरकार विचार कर सकती है। हालांकि याचियों की ओर से इस मौखिक प्रस्ताव को सिरे से नामंजूर कर दिया गया।
याचियों के अधिवक्ताओं का कहना था कि सरकार वर्ष 2018 की परीक्षा के भांति यदि 40 व 45 प्रतिशत क्वालिफाइंग मार्क्स तय करे। इस पर सरकार की ओर से इंकार करते हुए, पुनः कहा गया कि वह मेरिट से समझौता नहीं कर सकती। जिसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई शुक्रवार को भी जारी रखने का निर्देश दिया।
यह निर्देश न्यायमूर्ति आरएस चौहान की एकल सदस्यीय पीठ ने मोहम्मद रिजवान के आदि की ओर से दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवायी करते हुए पारित किया। गुरुवार को भी सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए, मेरिट व क्वालिटी एजुकेशन के पक्ष में दलील दी गई। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत चंद्रा ने तमाम नियमों व सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का हवाला भी दिया। बहस के पश्चात उन्होंने मौखिक प्रस्ताव देते हुए, कहा कि सहायक शिक्षक के पदों के डेढ गुने अभ्यर्थियों को शॉर्टलिस्ट करने पर सरकार विचार कर सकती है।
इसके लिए प्राप्तांक के आधार पर ऊपर के अभ्यर्थियों का चयन किया जाएगा। इस पर याचियों के अधिवक्ताओं ने इस प्रस्ताव का जोरदार विरोध किया। याचियों की ओर से कहा गया कि इस लिस्ट में भी उनका चयन नहीं हो सकता क्योंकि 25 नम्बर का वेटेज उन्हें लिस्ट में जगह बना पाने के बाद ही दिया जाएगा। कहा गया कि सरकार पूर्व परीक्षा की भांति आरक्षित के लिए 40 व सामान्य के लिए 45 प्रतिशत क्वालिफाइंग मार्क्स तय करे।
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