news18 : पुरानी पेंशन बहाली को लेकर सोमवार को राजधानी लखनऊ के ईको गार्डन में प्रदेश भर के लाखों शिक्षक, इंजीनियर्स, अधिकारी व कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे हैं. उनकी मांग है कि 1 अप्रैल 2005 से लागू न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) की जगह पुरानी व्यवस्था को लागू किया जाए, ताकि रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी के परिवार का भविष्य सुनिश्चित हो सके. दरअसल, पुरानी पेंशन बहाली की मांग उठाने वाले संगठनों का कहना है कि एनपीएस पूरी तरह से फेल है. लागू होने के 14 साल बाद भी यह व्यवस्था अभी तक पटरी पर नहीं आ सकी है. ऐसे में रिटायर हो चुके या रिटायर होने वाले कर्मचारियों को मिलने वाला जीपीएफ का पैसा भी फंसा है
अटेवा-पुरानी पेंशन बचाओ मंच यूपी के मीडिया प्रभारी राजेश यादव कहते हैं कि न्यू पेंशन स्कीम एक म्यूचुअल फंड की तरह है जिससे कर्मचारियों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा, "एनपीएस जो है, वह शेयर मार्केट पर आधारित व्यवस्था है. जबकि पुरानी पेंशन में हर साल डीए जोड़ा जाता था. जो कि एनपीएस में नहीं है. एनपीएस के तहत जो टोटल अमाउंट है, उसका 40 प्रतिशत शेयर मार्केट में लगाया जाता है. पुरानी व्यवस्था में ऐसा कुछ भी नहीं था. साथ ही यह गारंटी भी थी कि कर्मचारी या अधिकारी की आखिरी सैलरी का लगभग आधा उसे पेंशन के तौर पर मिलता था. लेकिन इस नई व्यवस्था में इसकी कोई गारंटी भी नहीं है. वह शेयर मार्केट पर आधारित होगा. जिस दिन वह रिटायर हो रहा है, उस दिन जैसा शेयर मार्केट होगा, उस हिसाब से उसे 60 प्रतिशत मिल जाएगा और बाकी के 40 प्रतिशत के लिए उसे पेंशन प्लान लेना होगा. उस पेंशन प्लान के आधार पर उसकी पेंशन निर्धारित होगी. मान लीजिए अगर किसी की पेंशन 2000 निर्धारित हो गई तो वह पेंशन उसे आजीवन मिलेगी. उसमें कोई उतार-चढ़ाव नहीं होगा. पुरानी व्यवस्था के तहत मान लीजिए अगर किसी की आखिरी सैलरी 50 हजार है तो उसे 25 हजार पेंशन मिलती थी. इसके अलावा हर साल मिलने वाला डीए और वेतन आयोग के तहत वृद्धि की सुविधा थी."
राजेश यादव आगे कहते हैं, "लड़ाई इसी बात की है कि यह शेयर मार्केट आधारित व्यवस्था है. मान लीजिए कि एक कर्मचारी एक लाख रुपये जमा करता है. जिस दिन वह रिटायर होता है उस दिन शेयर मार्केट में उसके एक लाख का मूल्य 10 हजार है तो उसे 6 हजार रुपये मिलेंगे और बाकी 4 हजार में उसे किसी भी बीमा कंपनी से पेंशन स्कीम लेनी होगी. इसमें कोई गारंटी नहीं है. यही विरोध का मुख्य वजह है."
यादव ने कहा, "पहले जो व्यवस्था थी, उसमें नौकरी करने वाले व्यक्ति का जीपीएफ अकाउंट खोला जाता था. उसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 10 फ़ीसदी कटौती करके जमा किया जाता था. जब वह रिटायर होता था तो उसे जीपीएफ में जमा कुल राशि का भुगतान होता था और सरकार की तरफ से आजीवन पेंशन मिलती थी. नई व्यवस्था में जीपीएफ अकाउंट बंद कर दिया गया है."
यादव कहते हैं कि 1 जनवरी 2004 को जब केंद्र सरकार ने पुरानी व्यवस्था को खत्म कर नई व्यवस्था लागू की गई तो एक बात साफ थी कि अगर राज्य चाहें तो इसे अपने यहां लागू कर सकते हैं. मतलब व्यवस्था स्वैच्छिक थी. 1 अप्रैल 2005 को यह व्यवस्था यूपी में भी लागू की गई, जबकि पश्चिम बंगाल में आज भी पुरानी व्यवस्था ही लागू है. अब नई व्यवस्था के तहत 10 प्रतिशत कर्मचारी और 10 प्रतिशत सरकार देती है. लेकिन जो सरकार का 10 प्रतिशत का बजट है, वही पूरा नहीं है. मान लीजिए यूपी में मौजूदा समय में 13 लाख कर्मचारी है. अगर उनकी औसत सैलरी निकाली जाए तो वह 25 हजार के आसपास है. इस हिसाब से कर्मचारी का 2500 रुपए अंशदान है. लेकिन इतना ही अंशदान सरकार को भी करना है. अगर एक लमसम अमाउंट की बात करें तो सरकार के ऊपर कई हजार करोड़ का भार आएगा. लेकिन सरकार के पास वह बजट ही नहीं है.
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