इलाहाबाद विधि संवाददाताइलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग इलाहाबाद की पांच साल की भर्तियों की सीबीआई जांच पर केंद्र व राज्य सरकार और सीबीआई से एक सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही अगली सुनवाई तक जांच के क्रम में आयोग के सदस्यों को बुलाकर पूछताछ पर रोक लगा दी है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले एवं न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इलाहाबाद के अध्यक्ष व सदस्यों की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। केंद्र सरकार के सहायक सॉलीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश ने सीबीआई की तरफ से इस बात का आश्वासन भी दिया कि आयोग के सदस्यों को सम्मन नहीं भेजा जाएगा।याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन ने कहा कि लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इसकी जांच नहीं कराई जा सकती। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि याचिका में 31 जुलाई 2017 के आदेश को चुनौती नहीं दी गई है जबकि इसी आदेश से भर्तियों की जांच सीबीआई को सौंपी गई । राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने 21 नवम्बर 2017 को सीबीआई जांच की अधिसूचना जारी की है। कोर्ट ने याचियों को संशोधन अर्जी के जरिए 31 जुलाई 2017 के आदेश को चुनौती देने की छूट दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि सीबीआई जांच की संस्तुति भेजने के लिए क्या तथ्य हैं। कोर्ट ने जानना चाहा है कि सीबीआई जांच करेगी या विवेचना। यदि विवेचना करेगी तो एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी भी कर सकती है। इस पर मनीष गोयल ने कहा कि सीबीआई पहले प्रारम्भिक जांच करेगी और फिर एफआईआर दर्ज कर विवेचना करेगी। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच कर सकती है लेकिन वह आयोग के सदस्यों को सम्मन कर पूछताछ न करे। उधर, पूर्व राज्यपाल जेएफ रिबेरो व अन्य की ओर से इस याचिका में भी अंतर्हस्तक्षेपीय अर्जी दी गई है। मामले पर अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने जुलाई माह में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पांच साल की भर्तियों की सीबीआई जांच की संस्तुति की थी।
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उठे सवाल हाईकोर्ट : लोक सेवा आयोग के सदस्यों से पूछताछ पर रोक , भर्तियों की जांच पर केंद्र, राज्य सरकार व सीबीआई से जवाब तलब
Wednesday, 10 January 2018
उठे सवाल हाईकोर्ट : लोक सेवा आयोग के सदस्यों से पूछताछ पर रोक , भर्तियों की जांच पर केंद्र, राज्य सरकार व सीबीआई से जवाब तलब
इलाहाबाद विधि संवाददाताइलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक सेवा आयोग इलाहाबाद की पांच साल की भर्तियों की सीबीआई जांच पर केंद्र व राज्य सरकार और सीबीआई से एक सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही अगली सुनवाई तक जांच के क्रम में आयोग के सदस्यों को बुलाकर पूछताछ पर रोक लगा दी है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डीबी भोसले एवं न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग इलाहाबाद के अध्यक्ष व सदस्यों की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। केंद्र सरकार के सहायक सॉलीसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश ने सीबीआई की तरफ से इस बात का आश्वासन भी दिया कि आयोग के सदस्यों को सम्मन नहीं भेजा जाएगा।याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनंदन ने कहा कि लोक सेवा आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इसकी जांच नहीं कराई जा सकती। अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि याचिका में 31 जुलाई 2017 के आदेश को चुनौती नहीं दी गई है जबकि इसी आदेश से भर्तियों की जांच सीबीआई को सौंपी गई । राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने 21 नवम्बर 2017 को सीबीआई जांच की अधिसूचना जारी की है। कोर्ट ने याचियों को संशोधन अर्जी के जरिए 31 जुलाई 2017 के आदेश को चुनौती देने की छूट दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि सीबीआई जांच की संस्तुति भेजने के लिए क्या तथ्य हैं। कोर्ट ने जानना चाहा है कि सीबीआई जांच करेगी या विवेचना। यदि विवेचना करेगी तो एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी भी कर सकती है। इस पर मनीष गोयल ने कहा कि सीबीआई पहले प्रारम्भिक जांच करेगी और फिर एफआईआर दर्ज कर विवेचना करेगी। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई जांच कर सकती है लेकिन वह आयोग के सदस्यों को सम्मन कर पूछताछ न करे। उधर, पूर्व राज्यपाल जेएफ रिबेरो व अन्य की ओर से इस याचिका में भी अंतर्हस्तक्षेपीय अर्जी दी गई है। मामले पर अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने जुलाई माह में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की पांच साल की भर्तियों की सीबीआई जांच की संस्तुति की थी।
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